चाँद फिर निकला: Written By: Kamlesh Chauhan


चाँद फिर निकला


Written By: Kamlesh Chauhan Copyright@ July 9th, 2008



ये चाँद आज फिर निकला है यु सज धज के

मुहबत का जिक्र हो शायद हाथो की लकीरों मे


याद दिलाता है मुझे एक अनजान राही की

याद दिलाता है उन मुहबत भरी बातो की

टूट कर चाहा इक रात दिल ने एक बेगाने को

कबूल कर लिया था उसकी रस भरी बातो को


वोह पास हो कर भी दूर है मुझ से

दूर होकर भी कितने करीब है दिल के


उनको देखने के लिये ये नैन कितने प्यासे थे

उनको देखने की चाह मे हम दूर तक गए थे

डूब जाते है चश्मे नाज़ मे उनका कहना था

जिंदगी कर दी हमारे नाम उनका ये दावा था

आज चाँद फिर निकला बन ठन कर

चांदनी का नूर छलका हो यु ज़मीं पर

याद आयी नाखुदा आज फिर शब्-ए-गम की

मदभरी,मदहोश,रिश्ता-ए-उल्फ़ते,शबे दराज की


नैनो मे खो गए थे नैन कुछ ऐसे उस रात

छु लिया यूँ करीब हो कर खुल गया हर राज़


आज पूरण माशी का चाँद फिर निकला

सवाल करता है आपसे आज दिल मेरा

मेरे चाँद

तोड़ कर खिलोनो की तरह यह दिल

किसके सहारे छोड़ देते हो यह दिल

अगर वायदे निभा नहीं सकते थे तुम

जिंदगी का सफ़र न कर सकते थे तुम

कियों आवाज दी इस मासूम दिल को

कियों कर दस्तक देते हो इस दिल को

मत खेलो इस दिल से मेरे हजूर

मत छीनो मेरी आँखों का नूर

हमारा तो पहला पहला प्यार है

आँखों मे तुम्हारा ही खुमार है

हर रोज तुम्हारा ही इंतजार है

दिन रात दिल रोये जार जार है


या तो हमें सफ़र मे साथ लेलो

या फिर अपनी तरह

हमें भी खुद को भुलाना सीखा दो

जीना सिखा दो मरना सिखा दो

अभी तो ज़िन्दगी एक इल्जाम है

बिन तुम्हारे सुनी दुनिया

हमारा तो संसार ही बेजार है

all rights reserved with Kamlesh Chauhan none of the lines and words are allowed to manipulate and changed. Thanks







Comments

  1. चांद निकला और पुरानी यादें दिलाने लगा ।एक बहुत ही सुन्दर बात कही गई है इस रचना में कि पास होकर भी दूर और दूर होकर भी पास गहन चिन्तन योग्य।खिलौने की तरह तोडने वाली बात पर एक फिल्मी गाना याद आगया। एक और बात इस रचना में विशेष है कि या तो साथ लेलो या भुलाना सिखादो । उत्तम रचना ।

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  2. Thanks Brij Mohan Apka Honsla Badane ka ham Purdes mai aakar kuch kavitaye bus u hi likh dete hai Kash hamare Pass apni bhasha ka command hota.

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  3. -
    Chand fir nikla tum na aye

    Dard bhi hai shikaayat bhi
    Mayoosi bhi hai afsoas bhi

    Dost mai toa na ashiq aisa
    Bimar ho jaun bimar yad se

    Tadbeer pe ab karo bharosa
    Na kholo taqdeer ke haadse

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