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नयी पीढ़ी , नयी फसल ,, नयी हड्डिया और पुराणी हड्डिया : Lekhika Gauri

नयी पीढ़ी , नयी फसल ,, नयी हड्डिया और पुराणी हड्डिया KAMLESH CHAUHAN · THURSDAY, DECEMBER 21, 2017 16 Reads Gauri कभी वह ज़माना था जब हमारे कम पड़े लिखे माँ बाप। नाना सा नानी सा , फुफा फुफी। मासी सा मौसा सा यह सिखाया करते थे बड़ो से कैसे बात करते है। गलती न होने पर भी किसी बात पे ज़िद करने पर माफ़ी मांगने पर विवश किया करते थे। लेकिन यह कैसा जमाना है ? हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार, अल्पेश ठाकोर और जिगनेश मवानी जैसी औलाद को किसने जनम दिया ? कौन देता है इनको पैसा ? कहा से आये है यह लोग जो अपनी मातृभूमि को भी बेच रहे है ? कौन है इन लोगो के पीछे ? कौन पैसा खिला रहा है इनको ? यह कैसा पालन पोषण है या फिर उनकी संगत कैसी है जिनके अपनी ज़ुबान से शब्द निकालते वक़त उनकी बुद्धि घास चरने चली जाती है कि उनके घर में भी उनके पिता की हड्डियां सेकने के लिये कहा भेजा जाये ? युवायो की ज़ुबान ख़राब की जा रही है और कितनी बदतमीज़ी है कितनी नीचता है इन इन लोगो में की बड़ो को गाली दे कर कहते है मैं तो गाली दूँगा ? कितने निर्लज है यह दो दो टके के मोल पर बिकने वाले, कल

Sindh and Baluchistan needs to be free

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PLIGHT OF REFUGEES HIGHLIGHTED ON UN REFUGEE DAY 7/19/2017 0 Comments ​BY DEVIKA C. MEHTA ARTESIA, CA - Tragedies are real, memories are painful and voices incoherent when the loss of refugees, their household and partition flashbacks come to mind. The  ordeal  has been a part of daily life not just for Indians, but for people of many other regions across the world, who together joined hands recently to ease the suffering... on the occasion of World Refugee Day. Coming forth, two US based non-profit organizations marked the day with a show of strength and discussions that awakened people about the issues many communities have been facing for a long time now. For the fifth time in a row, the Kashmiri Hindu Foundation and Jagriti, along with many Indo-American families came together to commemorate United Nations World Refugee Day at Tara’s Himalayan Cuisine here on July 16. The event saw the presence of world leaders from Balochistan, Sin

भारत माँ की आँखों के आंसू , शहीदों के नाम लेखिका : गौरी

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भारत माँ की आँखों के आंसू , शहीदों के नाम  लेखिका : गौरी  ऐ ! वीर , मेरे देश के जवान शहीद , तेरी राह की धूल को मै  अपने माथे पर लगाती हु।  जिस दिन से आई हु परदेस में तेरे तेज़  की दास्ताँ अपनी कलम से ब्यान करती हु।  कैसा अंधेर छाया है, कुछ चंद नेतायो, अभिनेतायो  ने दुश्मनो से जाकर हाथ  मिलाया है। इन खिलाड़ीयो ने ,खलनायको ने दो सिक्को  के लिए तुम्हारी शहादत को पल में भुलाया है।     तुम काँटों पर चलकर  देश की रक्षा जिंदादिली से चप्पे चप्पे पर अपना खून बहाते  गये।  भूख प्यास , गरम सर्द सह  कर बेखबर कुछ ज़ालिम देश द्रोहियो की जान भी बचाते रहे।  चंद सिक्को की चमक में  देशद्रोही नेतायों, लालची खिलाडीयो ,कलाकारों ने बेच डाला ईमान   इनके गलो में है फूलो के हार  और तुम्हारे  गले से उतर गयी किसी दरिन्दे की बेरहम तलवार।   अलख जलाया मैंने जिस सरहद पर तेरा खून बहा ,उस सरहद पर हर भारती  का है सर झुका   मणि शंकर आयर कायर राज -द्रोहियो ने भुलायी तुम्हारी शहादत भारत माँ को शर्मनाक किया।  आंधीयो , तुफानो का सिलसिला है , तेरे खून से सरहद के पर्वत नदिया तेरे वीरता क

उमर फैयाज की शहादत काबुल होगी अल्लाह की दरगाह में लेखिका : कमलेश चौहान ( गौरी)

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उमर फैयाज की शहादत काबुल होगी अल्लाह की दरगाह में ले खिका  : कमलेश चौहान ( गौरी)  कैसे उठें होंगे उन शैतानो के हाथ एक मासूम के जिसम पर  क्या  गुजरी होगी उसकी माँ के  दिल  जिगर दिमाग पर  माँ की चीखें गूँजती रही  , कूंचो में , गलियों में  दीवारों में  किसी बहिन की फ़रियाद रोती  रही इन्सानियत की भीड़ में  तुम फरेब  से उस मासुम को फुसलाकर अपने खेमे में ले गये   नापाक हाथों से  उस बेगुनाह पर जुलम की गोली बरसाते गये  जिसकी जवानी , जिसकी सूरत , मुस्कराहट इतनी मासूम सी थी   जिसके  सपने ,जिसकी नज़रे , जिसकी तस्वीर एक इबारत सी थी  उमर फ़ैयाज़ तेरी शहादत काबुल होगी अल्लाह की दरगाह में   शैतानों के नाम का ज़िकर भी न होगा  दुनिया के इतिहास में    उमर फैयाज एक सच्चा हिंदुस्तानी , एक सच्चा भारती , एक सच्चा मुसलमान था।  अल्लाह इसे ज़न्नत में जगह दे ( गौरी) Please   do not    look at this poem  as a point of religion . This young soldier of India  been abducted with  fraud   and  brutally been killed by terrorists . Silence of the human right on these abducted s

जी चाहता है। लेखिका : कमलेश चौहान (गौरी) Copy right at Kamlesh Chauhan (Gauri)

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जी  चाहता है।  लेखिका : कमलेश चौहान (गौरी) दिल न जाने क्यूँ  यू बैचैन  सा रहता , हर';वक़त न जाने क्यूँ उखड़ा उखड़ा सा रहता है।  ना  सहरा में ना जंगल बीयाबान में, न झीलों में  न सागर की किनारेपर  कभी बहलता है।   जिस धरती  पर मेरी  तक़दीर मुझे बिना पूछे  कर्म के पंख लगाकर ले आयी थी.   उस माटी में  कभी मैले वस्त्रो में  कभी , बिखरे बालो में  नंगे पांव खेला करती थी उस   कर्म धरती की  माटी को भी मैं अपने देश में मिलाने का सपना पालती थी   कितनी पावन थी मेरी वोह माटी  ले हाथ  तिरंगे को गली गली लहराया करती थी  बस एक ही तमन्ना है  पंछी जानवर , बच्चे बूढ़े  जवान युवो को देशप्रेम सीखा दु  सरहद पर लड़ने वालों सैनिक  के आगे अपना सीस झुका उनके कदमो को चुम लु  टुटे उन आतंकियो के हाथ निगोड़े ,जिन्होंने मेरे देश के वीरो पर हैं बंब और पत्थर फोड़े   कट जाये वो जालिम  ज़ुबान , जो मेरे देश के शहीदों, रक्षको के लिये अपशब्द  है बोले ।  जी चाहता है  बदले मेरा देश , बने  फिर सोने की चिड़िया , रहे न जिन्दा कोई बेईमान   बांध कफ़न को सर पर उठो जवानों आतंकवादिय

VTS 01 1

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