बेवज़ह तेरी गली में : Copy right @Kamlesh Chauhan ( Gauri)लेखिका : कमलेश चौहान (गौरी)

बेवज़ह  तेरी गली में

Copy right @Kamlesh Chauhan ( Gauri)

लेखिका : कमलेश चौहान (गौरी)

कहाँ से लायू किताबे ज़ीस्त , कौन लिखेंगा तेरा नाम ?
मेरे   हाथो की लकीरों में
अंधेरो से गिला क्या  करू , उदय होते ही   उजले सूरज से 
दोनों हाथ जल गए थे सवेरे में
दिल की दहलीज़ पर सदियों से जो सुबह की कायनात सी
ख़ामोशी  छाई थी
ले जाकर किनारे पर  साहिल ने चुपके से सागर में
खुद ही नाव डुबोई थी
चले ले कर रहगुजर में मीठे  खवाबो का काफिला
दो अजनबी इक  साथ
बिन सोचे, बेख्याल , मदहोश, बेकाबू  हिसारो में कैद
मासूम ज़ज्बात
याद आये  वोह  रविंशे-गर्दोबाद तेज़ हवा के झोंके
मेरे कदम बेवजह तेरी गली में ले गए
न जाने क्या हुवा यह तो है मेरी  रूह के पहचाने दरो दिवार
बेखुद नासुबरी आ गए
शौके -बे -माया ने तुझे भी  शायद  जा नींद से जगाया होगा
सुनी जो  शबेतार में कदम की आहट
मेरी आँखों में थी तेरी रोशनी शायद चाँद निकल आया होगा
हलके हलके बढ़ने  लगी  दिलो की चाहत
तुम्हारी वफ़ा को करू मै सजदे , तकरार पर भी
रोक लेते हो रास्ता मेरा
 मेरी भीगी पलकों को  यु  चूम कर  मस्ती  में  मुस्करा  देते हो
चुमते है लब  मेरे नाम तेरा
आस दिलाते हो उन पालो की तुम और मै  का सरूर  होगा
सर्द रातो की लम्बी  रातो में खामोश चाँद  तारो का साथ होगा 
 
बस कर मेरे दिल की धड़कनों  में मेरा राज़ जाने वाले
तुझे हासिल करना
दो जहानों के फासलों में  दहकते ज़ज्बातो को जगाने वाले
दिन रात तेरे ख्वाब देखना
मेरे मुकदर में  अदब का लिखा कहर नहीं बदल सकता
जो बिगड़ जाते  है नसीबे तखली कंकारो के हाथो
वोह नसीब गुल्बदानो से संवारा नहीं जा सकता
सुन गौर से र्हर्बने शौक यह भरम की खावाबे राह्गुजर है
जिनकी तकदीरो में शिकस्ते मुसाफत
उनका वक़त बदले भी नहीं बदल सकता
बेहतर है इसे  इक रात का खोया   खवाब समझकर सुबह होते भूल जाना
रहे तेरी दुनिया आबाद यारब ,  मेरे हर गुनाह को नसीब की भूल समझ लेना। 
All Rights Reserved with Kamlesh ChauhanGauri. Nothing should be manipulated or exploited for any use of words, Ideas and sentiments.

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