बेवज़ह तेरी गली में Copy right @Kamlesh Chauhan ( Gauri) लेखिका : कमलेश चौहान (गौरी) कहाँ से लायू किताबे ज़ीस्त , कौन लिखेंगा तेरा नाम ? मेरे हाथो की लकीरों में अंधेरो से गिला क्या करू , उदय होते ही उजले सूरज से दोनों हाथ जल गए थे सवेरे में दिल की दहलीज़ पर सदियों से जो सुबह की कायनात सी ख़ामोशी छाई थी ले जाकर किनारे पर साहिल ने चुपके से सागर में खुद ही नाव डुबोई थी चले ले कर रहगुजर में मीठे खवाबो का काफिला दो अजनबी इक साथ बिन सोचे, बेख्याल , मदहोश, बेकाबू हिसा रो में कैद मासूम ज़ज्बात याद आये वोह रविंशे-गर्दोबाद तेज़ हवा के झोंके मेरे कदम बेवजह तेरी गली में ले गए न जाने क्या हुवा यह तो है मेरी रूह के पहचाने दरो दिवार बेखुद नासुबरी आ गए शौके -बे -माया ने तुझे भी शायद जा नींद से जगाया होगा सुनी जो शबेतार में कदम की आहट मेरी आँखों में थी तेरी रोशनी शायद चाँद निकल आया होगा हलके हलके बढ़ने लगी दिलो की चाहत तुम्हारी वफ़ा को करू मै सजदे , तकरार पर भी रोक लेते हो रास्ता मेरा मेरी भीगी पलकों को यु चूम कर मस्ती में मुस्करा देते हो चुमते ह