ओह! शहीदो की जलती चिता को भुलने वालो :लेखिका : कमलेश चौहान (गौरी )
ओह! शहीदो की जलती चिता को भुलने वालो
लेखिका : कमलेश चौहान (गौरी )
Copyright@Kamlesh Chauhan(Gauri)
लगी यु गहरी चोट जिगर पर जब जब मेरा प्यारा वतन ज़ख़्मी हुआ।
किसी ने किये टुकड़े वतन के किसी ने राम का नाम बदनाम किया।
ओह! शहीदो की जलती चिता को भुलने वालो देश के नादानों
सीमा पर गोली झेलने वालो की कुर्बानी का भी कभी सोचा तुमने।
कौमो ,मज़हबों पर बाँट दिया देश हर गली में फैला दी अराज़कता
पहन ईमानदारी का फरेबी लिबास, चुपचाप रहा दुश्मनो को पालता।
माँ के पेट को काटने वालो ,सुनो गौर से ताज़ को निर्लज तोड़ने वालो
पंजाब भारत माँ का पेट कश्मीर है ताज हिमालय की और तकने वालो।
इतनी जल्द भुल गये ?गोरी ,गजनवी के ज़ुलम सोमनाथ के चीख़ती आवाजें
तलवार की नोक पर धर्म को बदला हिंदुकुश में बहती माँ की मासुम औलादे
लुटी कश्मीर में कश्मीरी हिन्दु माँ बेटी की इज़्ज़त लाशें जेहलम के लेहरो में
फिर से कौन सियार चीखा है बाटने देश को राजधानी दिल्ली के हर कोने में।
उठो देशवासियों ! जागो रोक लो वतन को उत्थान से भयानक पतन की और
ले कर वतन के लिये ज़ज़्बाये जिगर सुनो अर्जुन कृष्ण की वानी का मीठा हिलोर।
Note :भाईयो मुझे वाह वाह नहीं चाहिये मुझे भारत माँ की जय और तिरंगे के तीन रंग चाहिये , गद्दारो को देश से भागने की कसम चाहिये।
मुझे तुम्हारा साथ चाहिये। माथा झुकाती हु सरस्वती माँ को मेरी टुटी फुटी कलम को तलवार बना दो मेरे भाईयो
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