वोह निकला चाँद पूरनमाशी का लेखिका : कमलेश चौहान (गौरी )
वोह निकला चाँद पूरनमाशी का
लेखिका : कमलेश चौहान (गौरी )
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खिड़की में खड़ी कुछ यु ही ताने बाने बुन रही थी
बार बार गुजरे लम्हों की परछाईया तले खोयी थी
वोह समुंदर का किनारा यहाँ हम साथ साथ चले थे
मुलाकातों के दामन में आँखों में नशा कुछ तबसुम थे
आज कुछ ऐसा आलम है तू नहीं तेरी यादे पुकारती है
गुजर जाती है सुबह हर शाम जुबान तुझे आवाज देती है
दीवारों को तनहाई में तुम्हारी पुरानी बाते सुनाती हु
धुप में देख अपना ही साया कल की बात कहती हु
सुनी मेरे चाँद ! कल रात की बात
आह ! कल निकला गज़ब का असमान में पूरनमाशी का चाँद था
आँखों में छाया तेरे नाम का खुमार, जिस्म में अजीब सा तनाव था
तुम तो कहीं दूर थे , पर तुम क्या जानो वोह चाँद धरती के बहूत करीब था
ख़ामोशी से जुबान कह उठी , उफ़ ! दुनिया बनाने वाले तेरी कुदरत का कमाल था
फिर उभरा सीने में भुला बिसरा दर्द , फिर आयी वोह पूरनमाशी की रात की याद
जिस रात तुने सुनाया मज़बूरी का साज ,टूट गया हमदोनो का सुहाना खवाब
चांदनी रातो में यु रो कर, मुझे यु झूठी तसली दे कर, तुम मुझसे जुदा हो गए थे
अपने दामन से तेरी आँखों के आंसू पोषती रही , तुम जब दूर अन्धेरो में खो गए थे
पूरनमाशी की रात आज भी है , मेरी आँखों में वोह नमी आज भी है
तू नहीं है मेरे पास तेरी आँखों में छलकते आंसुवो की तस्वीर आज भी है
रमणीय भावधारा
ReplyDeleteAravind aap to savyam ek mane huve unch koti ke sahitayekar ho apse sun kar dil ko bahoot acha lagga. Dhanayavad apka
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