Mere Zanib Ek Arz Hai Meri - writer _ Kamlesh Chauhan@2011.All Rights Reserved
मेरी जानिब इक अर्ज़ है मेरी लेखक : कमलेश चौहान ( गौरी) मैने माना की तेरी मुहब्बत ने बनाया दर्रिया-ए नापैदाकरा मुझे यह पाव में रस्मो रिवाजो की कड़िया दूर जाने को मजबूर करे मुझे गर गर्म हवाए सितम की उड़ा के किसी दूर सागर में फैंक आये मुझे आस न छोड़ देना , भूल न जाना यु रास्ते की भूल समझ कर मुझे पूछ रास्ता अम्बर से मेरे जानिब मेरे जिगर तुम हमें अपने पास बुला लेना हम गिर जाये राह में ठोकर खाकर , दे आसरा अपने कंधो पे हमें उठा लेना हम रूठ भी जाये अगर बार बार तुमसे , तुम प्यार से हमें यु मना लेना बिखर जाये अगर हमारे खुश्क उदास गेसू , अपने हाथो से इन्हे संवार देना हो कर बेज़ार इस दुनिया से तेरे आगे, रो पड़े बेमतलब बात बात पे हम देकर अपनी मजबूत बाज़ुवो का सहारा , तुम हमें अपने सीने से लगा लेना एहसास है दिल को खुबसूरत तो हम नहीं , काबिल भी नहीं रहे हम तेरे एक अर्ज़ है बस मेरी इतनी . मेरे यह हसीं खवाब तुम ...