Sadiyo ki Gulami Ka Tanha Deta hai Hari Jhandi Wala - Kamlesh Chauhan
सदियों की गुलामी का ताना देता है हरी झंडी वाला पाकिस्तान
लेखक : कमलेश चौहान
आज भी देखती है ख्वाब सुल्तान अलाउदीन और गजनवी की ओलाद
फैला दिया है आतंक पुरे भारत में लेकर देश में पल रहे देशद्रोही नेता का साथ
कश्मीर की घाटियों लुटी है हर भारती माँ बहिन बेटी और बीवी की लाज
फिर भी देश का रक्षक गाये गीत भाई चारे के जिन्दा रखा है अफज़ल व कसाब
देता है होका पाकिस्तान हरा होगा भारत तुमको फिर बनायेगे अपना गुलाम
ओह! देश की रक्षक कहाँ गया वोह ज़ज्बा वोह तुम्हारे देश भक्ति का परचार
दर दर भीख मांगते थे जनता से लेकर सडको पे नेता बनने का सुहाना खवाब
उठे है ज़लज़ले हिंदुस्तान में नेता बने है रावन अपने ही आजाद वतन में
देखकर लगायी जो आग सफल हो गया है दुश्मन नेता आये उसकी चुगल में
रात के अँधेरे में देश के रक्षक ने अजमाया जनता का सबर इस कदर
धर यमराज का घिनोना रूप बनाया रिश्वत को जनम सिद्ध अधिकार
अशक है उन देश वीरो की आँखों में खेली बाज़ी जिन्होंने कश्मीर की सरहंद पे
आज वोह दौर आया मीडिया नेता वार करे अपने ही वतन के देशभकतो पे
हो रहा है स्वतंत्रता का सौदा भरे है अपने हित के लिये विदेशो के गौदाम
भर्ष्टाचार के खिलाफ उठाया मुदा तो काट के रख देंगे उस सचाई की जुबान
सड़क पे पड़ा बीमार तू जा अपने घर तू , किससे अपने मर्ज़ की दवा मांग रहा है?
हिंदुस्तान को दुश्मन के हाथो बेचने वालो से एक रोटी का टुकरा मांग रहा है?
जो कल तुझसे वोटे मांगते थे आये है ले कर बदुके तेरी मौत का ऐलान
न रहा उनका कोई देश न रहा उनका कोई धरम बेच दिया है इमान
जब जब कटा गला हिन्दू का छुपी साध ली नेता और खबर देने वालो ने किया बदनाम कृषण राम को देकर दोष बसंती रंग को वतन के नेता ने
कला के नाम पे बाज़ार में सीता और भारत माँ वस्त्र उतारे जाते है
जिहाद के नाम पे अपने वतन में भारतीयों के गले कटवाए जाते है
हुवा है जब जब वार आतंक का दुश्मन से दोस्ती का हाथ बढ़ाते है
दहशत फिलाने वालो को छीन कर गरीबो का हक सीके बेचे जाते है
उठ भारती जब देश का नेता ही बचा सका ना अपनी भारत माँ लाज
इन देश के रिश्वतखोरों के खिलाफ मिलकर उठायो एक कठोर आवाज
मेरी हिंदी इतनी संगीन नहीं है फिर हिंदी में जो टाइप हुवा है उसमे अगर त्रुटी हो तो हमें आप क्षमा कर दिजियेंगा , मेरी भावना देखिये मेरी जनमभूमि के लिये
All rights reserved@Kamlesh Chauhan ..06/2011
Comments
Post a Comment